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  1. Feb 5, 2023 · संत सूरदास के सर्वश्रेष्ठ दोहे का अर्थ हिन्दी मे पढ़िये 25 के साथ हिंदी कविता के साथ । कृष्ण की भक्ति, प्रेम, संसार की संपूर्णता के साथ सूरदास के दोहे का प्रेरित

  2. Dec 12, 2021 · सूरदास की रचनाओं में कृष्ण भक्ति का उल्लेख मिलता है। यहाँ उनके प्रसिद्ध दोहे का हिंदी अर्थ सहित देखें और उनकी जीवन का कथा और कविता का प्रसंसा क

  3. हिन्दी में पढ़ें सूरदास के प्रेम, भक्ति, नीति और प्रेरण के साथ-साथ के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ दोहे। सूरदास के कविताएं के मेलाप के साथ-साथ हिंदी क

  4. May 10, 2024 · जीवन परिचय. सूरदास जी हिन्दी के भक्तिकाल के महान कवि थे।. जन्म और स्थान : 1478 ईसवी मे ,रुनकता गांव, आगरा मथुरा मार्ग स्थित,उत्तरप्रदेश ,भारत ।. पिता : पंडित रामदास ( गायक ) गुरु : श्रीबल्लभाचार्य जी ।. रचनायें : सूरसागर ,सूरसरावली ,साहित्यलहरी ,नल-दमयन्ती ,ब्याहलो ।. मृत्यु : 1583 गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम.

    • हरि पालनैं झुलावै
    • मुख दधि लेप किए
    • मिटि गई अंतरबाधा – सूरदास के दोहे अर्थ सहित
    • मुखहिं बजावत बेनु
    • धेनु चराए आवत
    • गाइ चरावन जैहौं
    • चोरि माखन खात
    • कबहुं बोलत तात
    • अरु हलधर सों भैया
    • भई सहज मत भोरी

    जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥ मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै। तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥ कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥ इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै। जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥ अर्थ:राग घनाक्...

    सोभित कर नवनीत लिए। घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए।। चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए। लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए।। कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए। धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए।। अर्थ:राग बिलावल पर आधारित इस पद में श्रीकृष्ण की बाल लीला का अद्भुत वर्णन किया है भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने। श्रीकृष्ण अभी ...

    खेलौ जाइ स्याम संग राधा। यह सुनि कुंवरि हरष मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा।। जननी निरखि चकित रहि ठाढ़ी दंपति रूप अगाधा।। देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा।। संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढ़ी अगाधा।। मनहुं तडि़त घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा।। निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा।। सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा।। अर्थ...

    धनि यह बृंदावन की रेनु। नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु।। मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन। चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु।। इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु। सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु।। अर्थ:राग सारंग पर आधारित इस पद में सूरदास कहते हैं कि वह ब्रजरज धन्य है जहां नंदपुत्र श्रीकृष्ण गायों को चर...

    आजु हरि धेनु चराए आवत। मोर मुकुट बनमाल बिराज पीतांबर फहरावत।। जिहिं जिहिं भांति ग्वाल सब बोलत सुनि स्त्रवनन मन राखत। आपुन टेर लेत ताही सुर हरषत पुनि पुनि भाषत।। देखत नंद जसोदा रोहिनि अरु देखत ब्रज लोग। सूर स्याम गाइन संग आए मैया लीन्हे रोग।। अर्थ:भगवान् बालकृष्ण जब पहले दिन गाय चराने वन में जाते है, उसका अप्रतिम वर्णन किया है सूरदास जी ने अपने इस प...

    आजु मैं गाइ चरावन जैहौं। बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं।। ऐसी बात कहौ जनि बारे देखौ अपनी भांति। तनक तनक पग चलिहौ कैसें आवत ह्वै है राति।। प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ। तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे रेंगत घामहि मांझ।। तेरी सौं मोहि घाम न लागत भूख नहीं कछु नेक। सूरदास प्रभु कह्यो न मानत पर्यो अपनी टेक।। अर्थ:यह पद राग रामकली में...

    चली ब्रज घर घरनि यह बात। नंद सुत संग सखा लीन्हें चोरि माखन खात।। कोउ कहति मेरे भवन भीतर अबहिं पैठे धाइ। कोउ कहति मोहिं देखि द्वारें उतहिं गए पराइ।। कोउ कहति किहि भांति हरि कों देखौं अपने धाम। हेरि माखन देउं आछो खाइ जितनो स्याम।। कोउ कहति मैं देखि पाऊं भरि धरौं अंकवारि। कोउ कहति मैं बांधि राखों को सकैं निरवारि।। सूर प्रभु के मिलन कारन करति बुद्धि वि...

    खीझत जात माखन खात। अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात।। कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात। कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात।। कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात। सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात।। अर्थ:यह पद राग रामकली में बद्ध है। एक बार श्रीकृष्ण माखन खाते-खाते रूठ गए और रूठे भी ऐसे कि रोते-रोते नेत्र लाल हो गए। भौंहें वक्र हो गई ...

    कहन लागे मोहन मैया मैया। नंद महर सों बाबा बाबा अरु हलधर सों भैया।। ऊंच चढि़ चढि़ कहति जशोदा लै लै नाम कन्हैया। दूरि खेलन जनि जाहु लाला रे! मारैगी काहू की गैया।। गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैया। सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया।। अर्थ:सूरदास जी का यह पद राग देव गंधार में आबद्ध है। भगवान् बालकृष्ण मैया, बाबा और भैया कहने लगे हैं।...

    जो तुम सुनहु जसोदा गोरी। नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी।। हौं भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी। रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी।। मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी। जब गहि बांह कुलाहल कीनी तब गहि चरन निहोरी।। लागे लेन नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी। सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी।। अर्थ:सूरदास जी का यह पद ...

  5. सूरदास » हरि पालनैं झुलावै. जसोदा हरि पालनैं झुलावै।. हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥. मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।. तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥. कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।. सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥. इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।.

  6. Dec 16, 2021 · सूरदास जी की रचनाओं में श्री कृष्ण की भक्ति का भाव दिखाई देता हैं। यहां आप 12 लोकप्रिय दोहे के अर्थ सहित पढ़ सकते हैं, जो कृष्ण के रुप, लीला, रूप और

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