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  1. रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि निबन्धकार थे। [1] [2] वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है। [3]

  2. Jan 19, 2022 · रामधारी सिंहदिनकर’ (अंग्रेजी: Ramdhari Singh Dinkar; जन्म: 23 सितम्बर 1908, मृत्यु: 24 अप्रैल 1974) एक प्रसिद्ध कवि, निबंधकार तथा देशभक्त थे। उनके द्वारा ...

  3. जीवन परिचय : राष्ट्रकवि रामधारी सिंहदिनकर ’ का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के ग्राम सिमरिया में सन् 1908 ई.

  4. रामधारी सिंह दिनकर ने हिंदी साहित्य में गद्य और पद दोनों ही धाराओं में अपनी रचनाएँ लिखी हैं। वह एक कवि, पत्रकार, निबंधकार होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। क्या आप जानते हैं रामधारी दिनकर जी को ‘ क्रांतिकारी कवि’ के रूप में भी ख्याति मिली हैं। उन्होंने ‘रश्मिरथी’, ‘ कुरूक्षेत्र’ और ‘ उर्वशी’ जैसी रचनाओं में अपनी जिस काव्यात्मक प्रतिभा का ...

  5. रामधारी सिंह दिनकर को ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पुस्तक के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से और काव्य-कृति ‘उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ ...

  6. Mar 2, 2024 · Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी का जन्म 30 सितम्बर, सन् 1908 ई० में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। अल्पायु में ही इनके पिता का देहान्त हो गया था। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से बी० ए०...

  7. Ramdhari Singh (23 September 1908 – 24 April 1974), known by his pen name Dinkar, was an Indian Hindi language poet, essayist, freedom fighter, patriot and academic. He emerged as a poet of rebellion as a consequence of his nationalist poetry written in the days before Indian independence.

  8. कुछ प्रमुख कृतियाँ. कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छाँह, मिर्च का मज़ा, सूरज का ब्याह. विविध. काव्य संग्रह ...

  9. 1. प्रबन्ध काव्य – कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, प्रणभंग, उर्वशी, बारदोली विजय, धूपछाँह, बापू, इतिहास के आँसू, मिर्च का मजा, दिल्‍ली आदि।. 2. मुक्‍तक काव्य – रेणुका, हुँकार, रसवन्ती, इन्द्र गीत, सामधेनी, धूप और धुआं, नीम के पत्ते, नील कुसुम, सीपी और शंख, नये सुभाषित, चक्रवात, धार के उस पार, आत्मा की आँखें, हारे को हरि नाम. 3.

  10. रामधारी सिंह 'दिनकर' » सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं. स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं. बँधा हूँ, स्वप्न हूँ, लघु वृत हूँ मैं. नहीं तो व्योम का विस्तार हूँ मैं. समाना चाहता, जो बीन उर में. विकल उस शून्य की झंकार हूँ मैं. भटकता खोजता हूँ, ज्योति तम में. सुना है ज्योति का आगार हूँ मैं. जिसे निशि खोजती तारे जलाकर. उसी का कर रहा अभिसार हूँ मैं.