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  1. कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रेणुका, रश्मिरथी, द्वंदगीत, बापू, धूप छाँह, मिर्च का मज़ा, सूरज का ब्याह. विविध. काव्य संग्रह उर्वशी के लिये 1972 के ...

  2. कुरूक्षेत्र : रामधारी सिंह 'दिनकर' (हिन्दी कविता) Kurukshetra : Ramdhari Singh Dinkar. प्रथम सर्ग. वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है. प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसका हृदय उतना मलिन जितना कि शीर्ष वलक्ष है; जो आप तो लड़ता नहीं, कटवा किशोरों को मगर, आश्वस्त होकर सोचता,

  3. Mar 20, 2020 · Ramdhari Singh Dinkar Poems In Hindi : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं वीरता, विद्रोह और क्रांति के शब्दों से भरी हुई हैं। उनकी कविताएं व्यक्ति ...

  4. दिनकर जी की वीर रस की कविताएं आपको सदा जोश से भर देंगी। इन्हीं कविताओं में से एक प्रसिद्ध कविता, “ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ” भी है। जो कि भारत के गणतंत्र की घोषणा यानि कि लोकतंत्र के पक्ष में लिखी गयी थी। जिसका उद्देश्य लोकतंत्र में जनता को जनार्दन का सम्मान देना और समाज को जागरूक करना था।. सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी.

  5. Jul 11, 2023 · भारतीय साहित्य की गर्वभारी परंपरा में रामधारी सिंह दिनकर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि रहे हैं, जिन्होंने अपनी अद्वितीय रचनाओं से देशभक्ति और मानवता के संदेश को सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया। उनकी कविताओं का संग्रह हमें एक रोचक और गहराई से सम्पन्न साहित्यिक यात्रा प्रदान करता है।.

  6. रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्‍बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। [1] [2] वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि मानते हुए इन्हे 'युग-चारण' व 'काल के चारण' की संज्ञा दी गई है। [3]

  7. Jul 4, 2017 · उम्मीद की कविता में आज आपके लिए रामधारी सिंह दिनकर की कथाकाव्य रचना ‘रश्मिरथी’ से कुछ पंक्तियाँ हैं। ‘रश्मिरथी’ में रामधारी सिंह दिनकर महाभारत में कर्ण के कौशल और वीरता के संघर्ष को प्रमुखता से सामने लाए हैं।.

  8. यह पृष्ठ 32,17,880 बार देखा गया है।. गोपनीयता नीति. रश्मिरथी / रामधारी सिंह "दिनकर" - कविता कोश भारतीय काव्य का विशालतम और अव्यवसायिक संकलन ...

  9. मेरे विशाल! ओ, मौन, तपस्या-लीन यती! पल भर को तो कर दृगुन्मेष! रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल. है तड़प रहा पद पर स्वदेश।. सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना की अमिय-धार. जिस पुण्यभूमि की ओर बही. तेरी विगलित करुणा उदार, जिसके द्वारों पर खड़ा क्रान्त. सीमापति! तू ने की पुकार, 'पद-दलित इसे करना पीछे. पहले ले मेरा सिर उतार।'

  10. Sep 23, 2016 · Ramdhari Singh Dinkar. विष्णु नारायण. नई दिल्‍ली, 23 सितंबर 2016, (अपडेटेड 23 सितंबर 2016, 1:01 PM IST) वैसी कविता जो मन को आंदोलित कर दे और उसकी गूंज सालों तक सुनाई दे. ऐसा बहुत ही कम हिन्दी कविताओं में देखने को मिलता है.