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  1. Sep 27, 2017 · हिन्दी साहित्य के महान कवी सुमित्रानंदन पंत की कुछ कविताएँ पढ़ें। सुख-दुख, जीवन, मोह, प्रेम, सत्य आदि के मूल्यों के प्रति कहाने में उन्हों की कविताएँ प्रेरित हैं।

  2. Aug 8, 2023 · This collection includes some of his best work from across the years including “The Rain”, which was inspired by a monsoon night in Kolkata, and “I Will Go Back” which describes how he left Bengal for London as a young man. Let’s look at the Sumitranandan Pant Poems In Hindi.

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    • सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
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    जग-जीवन में जो चिर महान

    जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य-पूर्ण औ सत्‍य-प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव-हित हो समान। जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटे भय, संशय, अंध-भक्ति; मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिट जावें जिसमें अखिल व्‍यक्ति। दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार, हर भेद-भाव का अंधकार, मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्‍वर्ग-द्वार। पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान करने मानव का परित्राण, ला सकूँ विश्‍व में एक बार फिर से नव जीवन का विहान।

    मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे

    ममैने छुटपन मे छिपकर पैसे बोये थे सोचा था पैसों के प्यारे पेड़ उगेंगे , रुपयों की कलदार मधुर फसलें खनकेंगी , और, फूल फलकर मै मोटा सेठ बनूगा ! पर बन्जर धरती में एक न अंकुर फूटा , बन्ध्या मिट्टी ने एक भी पैसा उगला । सपने जाने कहां मिटे , कब धूल हो गये । मै हताश हो , बाट जोहता रहा दिनो तक , बाल कल्पना के अपलक पांवड़े बिछाकर । मै अबोध था, मैने गलत बीज बोये थे , ममता को रोपा था , तृष्णा को सींचा था । अर्धशती हहराती निकल गयी है तबसे । कितने ही मधु पतझर बीत गये अनजाने ग्रीष्म तपे , वर्षा झूलीं , शरद...

    उत्तरा नामक रचना से

    मैं चिर श्रद्धा लेकर आई वह साध बनी प्रिय परिचय में, मैं भक्ति हृदय में भर लाई, वह प्रीति बनी उर परिणय में। जिज्ञासा से था आकुल मन वह मिटी, हुई कब तन्मय मैं, विश्वास माँगती थी प्रतिक्षण आधार पा गई निश्चय मैं ! प्राणों की तृष्णा हुई लीन स्वप्नों के गोपन संचय में संशय भय मोह विषाद हीन लज्जा करुणा में निर्भय मैं ! लज्जा जाने कब बनी मान, अधिकार मिला कब अनुनय में पूजन आराधन बने गान कैसे, कब? करती विस्मय मैं ! उर करुणा के हित था कातर सम्मान पा गई अक्षय मैं, पापों अभिशापों की थी घर वरदान बनी मंगलमय म...

    चींटी को देखा?

    चींटी को देखा? वह सरल, विरल, काली रेखा तम के तागे सी जो हिल-डुल, चलती लघु पद पल-पल मिल-जुल, यह है पिपीलिका पाँति! देखो ना, किस भाँति काम करती वह सतत, कन-कन कनके चुनती अविरत। गाय चराती, धूप खिलाती, बच्चों की निगरानी करती लड़ती, अरि से तनिक न डरती, दल के दल सेना संवारती, घर-आँगन, जनपथ बुहारती। चींटी है प्राणी सामाजिक, वह श्रमजीवी, वह सुनागरिक। देखा चींटी को? उसके जी को? भूरे बालों की सी कतरन, छुपा नहीं उसका छोटापन, वह समस्त पृथ्वी पर निर्भर विचरण करती, श्रम में तन्मय वह जीवन की तिनगी अक्षय। वह...

    मिट्टी का गहरा अंधकार

    मिट्टी का गहरा अंधकार डूबा है उसमें एक बीज, वह खो न गया, मिट्टी न बना, कोदों, सरसों से क्षुद्र चीज! उस छोटे उर में छिपे हुए हैं डाल-पात औ’ स्कन्ध-मूल, गहरी हरीतिमा की संसृति, बहु रूप-रंग, फल और फूल! वह है मुट्ठी में बंद किए वट के पादप का महाकार, संसार एक! आश्चर्य एक! वह एक बूँद, सागर अपार! बन्दी उसमें जीवन-अंकुर जो तोड़ निखिल जग के बन्धन,– पाने को है निज सत्व,–मुक्ति! जड़ निद्रा से जग कर चेतन! आः, भेद न सका सृजन-रहस्य कोई भी! वह जो क्षुद्र पोत, उसमें अनन्त का है निवास, वह जग-जीवन से ओत-प्रोत!...

    काले बादल में रहती चाँदी की रेखा

    सुनता हूँ, मैंने भी देखा, काले बादल में रहती चाँदी की रेखा! काले बादल जाति द्वेष के, काले बादल विश्‍व क्‍लेश के, काले बादल उठते पथ पर नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के! सुनता आया हूँ, है देखा, काले बादल में हँसती चाँदी की रेखा! आज दिशा हैं घोर अँधेरी नभ में गरज रही रण भेरी, चमक रही चपला क्षण-क्षण पर झनक रही झिल्‍ली झन-झन कर! नाच-नाच आँगन में गाते केकी-केका काले बादल में लहरी चाँदी की रेखा। काले बादल, काले बादल, मन भय से हो उठता चंचल! कौन हृदय में कहता पलपल मृत्‍यु आ रही साजे दलबल! आग लग रही, घात चल...

    हे ग्राम देवता, भूति ग्राम !

    राम राम, हे ग्राम देवता, भूति ग्राम ! तुम पुरुष पुरातन, देव सनातन, पूर्णकाम, शिर पर शोभित वर छत्र तड़ित स्मित घन श्याम, वन पवन मर्मरित-व्यजन, अन्न फल श्री ललाम। तुम कोटि बाहु, वर हलधर, वृष वाहन बलिष्ठ, मित असन, निर्वसन, क्षीणोदर, चिर सौम्य शिष्ट; शिर स्वर्ण शस्य मंजरी मुकुट, गणपति वरिष्ठ, वाग्युद्ध वीर, क्षण क्रुद्ध धीर, नित कर्म निष्ठ। पिक वयनी मधुऋतु से प्रति वत्सर अभिनंदित, नव आम्र मंजरी मलय तुम्हें करता अर्पित। प्रावृट्‍ में तव प्रांगण घन गर्जन से हर्षित, मरकत कल्पित नव हरित प्ररोहों में...

    स्त्री

    यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर, दल पर दल खोल हृदय के अस्तर जब बिठलाती प्रसन्न होकर वह अमर प्रणय के शतदल पर! मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर, क्षण में प्राणों की पीड़ा हर, नव जीवन का दे सकती वर वह अधरों पर धर मदिराधर। यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर, वासनावर्त में डाल प्रखर वह अंध गर्त में चिर दुस्तर नर को ढकेल सकती सत्वर!

    आओ, अपने मन को टोवें

    आओ, अपने मन को टोवें! व्यर्थ देह के सँग मन की भी निर्धनता का बोझ न ढोवें। जाति पाँतियों में बहु बट कर सामाजिक जीवन संकट वर, स्वार्थ लिप्त रह, सर्व श्रेय के पथ में हम मत काँटे बोवें! उजड़ गया घर द्वार अचानक रहा भाग्य का खेल भयानक बीत गयी जो बीत गयी, हम उसके लिये नहीं अब रोवें! परिवर्तन ही जग का जीवन यहाँ विकास ह्रास संग विघटन, हम हों अपनें भाग्य विधाता यों मन का धीरज मत खोवें! साहस, दृढ संकल्प, शक्ति, श्रम नवयुग जीवन का रच उपक्रम, नव आशा से नव आस्था से नए भविष्यत स्वप्न सजोवें! नया क्षितिज अब...

    महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई 1900 ई॰ को हुआ जो ब्रितानी भारत के उत्तर-पश्चिम प्रांत में स्थित था। सुमित्रानन्दन पन्त के जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता का निधन हो गया। सुमित्रानन्दन पन्त का पालन पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में इनका नाम गोसाईं दत्त रखा गया था। उनके पिता का नाम गंगादत्त पंत था तथा...

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  3. कुमाँऊनी कविताएं. सार जंगल में त्वि ज / सुमित्रानंदन पंत. श्रेणियाँ: सुमित्रानंदन पंत - कविता कोश भारतीय काव्य का विशालतम और ...

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  5. Sumitranandan Pant (20 May 1900 – 28 December 1977) was an Indian poet. He was one of the most celebrated 20th century poets of the Hindi language and was known for romanticism in his poems which were inspired by nature, people and beauty within.

  6. Learn about Sumitranandan Pant, a renowned Hindi poet and a recipient of Padma Bhushan, Jnanpith Award and Sahitya Akademi Award. Explore his poems on Kaavyaalaya, a platform for Hindi poetry.