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  1. सूरदास ( संस्कृत : सूरदास , रोमानी भाषा में : सूरदास ) 16वीं सदी के हिंदू भक्ति कवि और गायक थे, जो भगवान कृष्ण की प्रशंसा में लिखे गए अपने ...

  2. Krishna Devotee Surdas Biography, History, Poetry and Stories Related to Him in Hindi | कृष्ण भक्त सूरदास की जीवनी, इतिहास, रचनाएँ और उनसे जुडी कहानियाँ

  3. सूरदास श्रीनाथ भ की "संस्कृतवार्ता मणिपाला', श्री हरिराय कृत "भाव-प्रकाश", श्री गोकुलनाथ की "निजवार्ता' आदि ग्रन्थों के आधार पर, जन्म के अन्धे माने गए हैं। लेकिन राधा-कृष्ण के रुप सौन्दर्य का सजीव चित्रण, नाना रंगों का वर्णन, सूक्ष्म पर्यवेक्षणशीलता आदि गुणों के कारण अधिकतर वर्तमान विद्वान सूर को जन्मान्ध स्वीकार नहीं करते।"

  4. ब्रज भाषा के महाकवि। "सूरसागर" सूरदास की सभी ज्ञात रचनाओं का संकलन है जिसमें इनकी लगभग 5000 रचनाएँ संकलित हैं।. जीवन परिचय. सूरदास ...

  5. सूरदास की सर्वसम्मत प्रामाणिक रचना ' सूरसागर ' है। एक प्रकार से 'सूरसागर' जैसा कि उसके नाम से सूचित होता है, उनकी सम्पूर्ण रचनाओं का संकलन कहा जा सकता है। [2] 'सूरसागर' के अतिरिक्त ' साहित्य लहरी ' और ' सूरसागर सारावली ' को भी कुछ विद्वान् उनकी प्रामाणिक रचनाएँ मानते हैं, परन्तु इनकी प्रामाणिकता सन्दिग्ध है। [3] सूरदास के नाम से कुछ अन्य तथाकथित...

  6. सूरदास ( अंग्रेज़ी: Surdas) हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म मथुरा- आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्र...

  7. सूरदास की कीर्ति का मुख्य आधार उनका ‘ सूरसागर‘ ग्रंथ है। इसके अतिरिक्त ‘सूर सारावली‘ और ‘साहित्य लहरी‘ भी उनकी रचनाओं में मानी जाती है। अन्य रचनाएं नल-दमयंती, ब्याहलो है।.

  8. विशेष तथ्य(Surdas in Hindi) 1. सूरदास जी को ’खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट्, जीवनोत्सव का कवि पुष्टिमार्ग का जहाज’ आदि नामों (विशेषणों ...

  9. Surdas Biography in Hindisurdas jeevani in hindi. भक्तिकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। यही वो दौर था, जब दक्षिण भारत से शुरू हुआ भक्ति आंदोलन बेहद कमसमय ...

  10. सूरदास » हरि पालनैं झुलावै. जसोदा हरि पालनैं झुलावै।. हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥. मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।. तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥. कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।. सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥. इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।.

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